राष्ट्रनिर्माण में युवाओं की भूमिका

         

राष्ट्रनिर्माण में युवाओं की भूमिका

                                       ~ मोo फैसल

संकल्पों के साधक हो तुम साहस भरी उड़ान हो।

मुकुट तुम्ही हो भारत माँ का, तुम ही हिन्दूस्तान हो।।

महावीर हो, बुद्ध तुम्ही हो, पंचतत्व के ज्ञाता हो।

उठो विवेकानन्द, तुम्ही भारत के नवनिर्माता हो।।

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कागज की नाव को छोड़ दिया 

हमने अब समंदर की जिम्मेदारी है 

अर्थात अब अपने घर अपने परिवार की ही नहीं अपितु पूरे भारत देश की पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी है अब हमें इसको चलाना है एक सच्चा सशक्त राष्ट्र बनाना है इसके लिए हमें अपना योगदान देना पड़ेगा

तीन प्रमुख तत्व हैं जो एक राष्ट्र की प्रगति में योगदान करते हैं। ये शिक्षा, रोजगार और सशक्तिकरण हैं। जब देश के युवाओं को शिक्षित किया जाता है और उनकी शिक्षा का सही उपयोग किया जाता है, तो एक राष्ट्र एक स्थिर गति से विकसित होता है। हमारे देश में अधिकांश युवा अशिक्षित हैं। उनमें से ज्यादातर पढ़ा और लिखा नहीं जा सकता।

इसलिए, अशिक्षा हमारे राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। हमारे देश की निरक्षर आबादी हमारे देश की प्रगति में बाधा डालती है। हमारे देश की सरकार को तार्किक, तर्कसंगत और खुले दिमाग से सोचने के लिए उन्हें सही शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए। यह उन्हें एक जिम्मेदार तरीके से कार्य करने और हमारे राष्ट्र की प्रगति के लिए काम करने में मदद करेगा।

राष्ट्र के बेरोजगार और बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करना भी बहुत महत्वपूर्ण है। रोजगार के अवसरों की कमी से सामाजिक अशांति हो सकती है। तीसरा, युवाओं को अपने जीवन की जिम्मेदारी संभालने के लिए सशक्त बनाना जरूरी है। उनके अधिकारों को बढ़ावा देना और उन्हें सामुदायिक निर्णय लेने में शामिल करना महत्वपूर्ण है।

युवाओं की ऊर्जा और बुद्धि को सही दिशा में प्रसारित करना और उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार रोजगार के अवसर प्रदान करना महत्वपूर्ण है या वे जीवन में गलत रास्ते पर जा सकते हैं। युवाओं को हिंसक या अन्य बुरी गतिविधियों में शामिल होने से रोका जाना चाहिए।

प्रस्तावना :

राष्ट्र निर्माण एक देश के सभी नागरिकों को सामाजिक एकता, राजनीतिक स्थिरता और व्यापक और लोकतांत्रिक तरीके से आर्थिक समृद्धि के निर्माण की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। राष्ट्र निर्माण तभी संभव है, जब सभी नागरिक राष्ट्र के विकास में शामिल हों। यह एक देश का युवा है जो राष्ट्र निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

राष्ट्रीय विकास :

राष्ट्र निर्माण में सामाजिक समरसता, बुनियादी ढांचे का विकास और राष्ट्र की आर्थिक वृद्धि शामिल है। बढ़ती अर्थव्यवस्था में युवाओं की भागीदारी राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक है। युवा देश की सबसे बड़ी शक्ति हैं इसलिए उन्हें सक्षम बनाने और राष्ट्र के सतत विकास के लिए पर्याप्त रूप से योगदान करने में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास स्थापित किए जाने चाहिए। राष्ट्रीय विकास से बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ नागरिकों के जीवन में सुधार होगा।

राष्ट्र निर्माण में सरकार की भूमिका :

सरकार को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करके युवाओं को सशक्त बनाना चाहिए। बढ़ती अर्थव्यवस्था में युवाओं की भागीदारी देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देगी और उन्हें राष्ट्र के जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए प्रोत्साहित करेगी। यह उनके राष्ट्र की प्रगति में उनकी रुचि भी बढ़ाएगा जिससे राष्ट्रीय विकास होगा। यह हमारे युवाओं के विकास और शिक्षा के लिए अन्य साधन प्रदान करके उनके भविष्य के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है।

शिक्षा एक व्यक्ति के लिए सही नींव बनाने में मदद करती है और उसे स्वतंत्र विकल्प बनाने और अपने सपनों का पीछा करने का अधिकार देती है। युवाओं को उनके व्यक्तिगत विकास और राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए अपनी ऊर्जा और कौशल को व्यवहार में लाने के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करने होंगे जो अंततः राष्ट्र की समग्र प्रगति और विकास को बढ़ावा देगा। युवाओं को प्रतिभागियों और सम्मानित नेताओं को अपनी शक्ति का उपयोग करने के लिए शामिल करना महत्वपूर्ण है। सरकार को राष्ट्र की महत्वपूर्ण गतिविधियों में युवाओं को प्रोत्साहित करने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनानी चाहिए।

योग की शक्ति :

युवा विचारों से भरे होते हैं और उनके विचारों को व्यवहार में लाने के लिए ऊर्जा का अनंत स्रोत होता है। उनकी मजबूत राय है और उन्हें आवाज देने से नहीं डरते। वर्तमान घटनाओं और नवीनतम प्रौद्योगिकी के साथ आज तक योग हैं। इसलिए, वे विभिन्न नौकरियों के लिए बहुत उपयुक्त हैं।

आज युवा जोखिम लेने, चुनौतियों का सामना करने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार हैं। वे अपने जुनून को पेशे में बदलने के लिए खुद पर और अपनी क्षमताओं पर विश्वास करते हैं जो उन्हें और अधिक सफल बनाता है।

युवा चाहते हैं कि राष्ट्र बेहतर जगह बने। वे राष्ट्र की व्यवस्था की आलोचना कर सकते हैं और साथ ही समाज को एक बेहतर स्थान बनाने की दिशा में बदलाव लाने के लिए खड़े हो सकते हैं। वे अपने स्वयं के अधिकारों के लिए और दूसरों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए काफी मजबूत हैं। वे कभी सही का समर्थन करने और गलत के खिलाफ आवाज उठाने से नहीं डरते।

वे सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ सकते हैं – यह भ्रष्टाचार, असमानता या आतंकवाद हो। वे लैंगिक असमानता, यौन उत्पीड़न, धार्मिक मुद्दों आदि जैसे मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों का उपयोग करते हैं। वे अनुचित या अमानवीय होने वाली धारणाओं को आँख बंद करके स्वीकार नहीं करते हैं।

हमारे देश के युवा प्रयोग करने के लिए खुले हैं और नृत्य, संगीत, फोटोग्राफी, ब्लॉगिंग, मॉडलिंग, अभिनय, लेखन और अन्य विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल और चमक चुके हैं। वे स्मार्ट, मजाकिया, बुद्धिमान, अग्रगामी और सामाजिक रूप से सक्रिय जानवर हैं जो बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं। वे जो करते हैं, उसके बारे में भावुक होते हैं, जो प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।

आज, युवा फैशन, फोटोग्राफी और क्या नहीं में प्रभाव के रूप में सोशल मीडिया पर धूम मचा रहे हैं। वे समाज में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं। वे सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें देखा और सुना जाए। वे सब कुछ तलाशने के लिए चिंगारी और साहस से भरे हैं। वे जानते हैं कि वे क्या करने में सक्षम हैं और सही दिशा में अपनी क्षमता का उपयोग कैसे करें।

देशभक्ति की क्या है ?  अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर तन मन और धन से अपने देश के प्रति समर्पित होना। हमारी फौज तो सीमा पर अपना कर्तव्य निभा रही है मगर हमारा युवा वर्ग फेसबुक, टिक टॉक, वीडियो गेम और गर्लफ्रेंड के प्यार में डूबा हुआ है। कहा जाता है कि किसी देश का भविष्य उस देश के युवाओं के हाथ में होता है। मगर हमारा युवा वर्ग ऐसे ही अपने कर्तव्य से विमुख होता रहा तो फिर हमारे देश का क्या होगा।


किसी को लगता है हिंदू खतरे में है, 

किसी को लगता है मुसलमान खतरे में है।

जाति-धर्म का चश्मा उतार कर देखो,

यारों हमारा पूरा हिंदुस्तान खतरे में है।

आजकल हमारा देश बड़े ही मुश्किल दौर से गुजर रहा है। हर जगह धर्म और जाति के नाम पर दंगे फसाद हो रहे हैं। हर जगह धरना प्रदर्शन हो रहे हैं। सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। एक तो हमारा देश पहले से ही आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे में हमारा देश इतने सारे नुकसान की भरपाई कैसे कर पाएगा। दोस्तों इस समय हमारे देश को युवाओं की जरूरत है, इसलिए हमारे देश के युवाओंं का का फर्ज बनता है कि देश केे प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें। वरना हमारा देश फिर से गुलाम बन जाएगा। क्या आप भूल गए हैं कि हमारे देश को आजाद कराने के लिए महात्मा गांधी,चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, खुदीराम बोस, और सुभाष चंद्र बोस जैसे लाखों क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। जरा सोचिए क्या वे भी आजकल के युवाओं की तरह सिर्फ अपने प्यार और अपने परिवार के बारे में सोचते तो क्या हमारा देश आजाद होता। हमारेेे देश में अधिकतर लोग झूठे देश प्रेम का दिखाना करते हैं। जिनको देशभक्ति की परिभाषा भी नहीं मालूम वो खुद को देश प्रेमी बता रहे हैं,इसलिए आज मैं उनके झूठे देश प्रेम की पोल खोलना चाहता हूं।

 दोस्तों हमारा भारत देश एक स्वतंत्र देश है इसलिए स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और एक आजाद देश के नागरिक होने के नाते हर नागरिक को अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है इसलिए आज मैं गणतंत्र दिवस के मौके पर अपने दिल की बात कहना चाहता हूं। और आज मैं कुछ कड़वी बातें कहने वाला हूं, इसलिए अगर आपको बुरा लगे तो मैं माफी चाहता हूं। वैसे मेरा उद्देश्य आपके दिल को चोट पहुंचाना नहीं है, मैं तो केवल आपके अंदर के इंडियन को जगाना चाहता हूं। तो चलिए आगे बढ़ते हैं।


 दोस्तों हम सब एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं। इसलिए हमें पूरी आजादी है कि हम जहां चाहे जब चाहे धरना प्रदर्शन कर सकते हैं। जब चाहे सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जहां चाहे वहां गंदगी फैला सकते हैं। सड़क पर जैसे चाहे गाड़ी चला सकते हैं। जब चाहे ट्रैफिक रूल तोड़ सकते हैं। हमें पूरी आजादी है कि हम जब चाहे जहां चाहे किसी लड़की से छेड़खानी कर सकते हैं। हम कोई भी अपराध कर सकते हैं। क्योंकि हम एक आजाद देश के नागरिक हैं, और हमारा कानून भी हमारी आजादी को समझता है। इसलिए हमारा कानून भी हर अपराधी को कानून से बचने के पर्याप्त मौके देता है, ताकि वह सजा से बच सके। हम जानते हैं कि आजादी हमें मुफ्त में नहीं मिली है इसके लिए लाखों लोगों ने अपना बलिदान दिया है। 

में अमन पसंद हूं

मेरे देश में दगां रहने दो

लाल और हरे में मत बाटों

उसको तिरंगा रहने दो

इसलिए हम अपनी आजादी का पूरा फायदा उठाते हैं। सड़क पर अपने घर का नाला बहाते हैं। पान मसाला खाकर कहीं भी थूक देते हैं। ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करते हैं। और टैक्स तो ऐसे चुराते हैं कि किसी को पता भी नहीं चलता। हम भारतीय नागरिक उसूलों के बड़े पक्के  होते हैं, इसलिए बिना गिफ्ट के ना कोई काम करते हैं ना कराते हैं। लोग भले ही इसे घूस कहते हैं, लेकिन हम तो इसे गिफ्ट ही कहते हैं। 

और हां यह मत समझना कि हम देशभक्त नहीं हैं। देशभक्ति की भावना हमारे अंदर कूट-कूट कर भरी हुई है। तभी तो सिनेमा घर में राष्ट्रगान के वक्त जो खड़ा नहीं होता उसे कुट देते हैं। हम इतने बड़े देशभक्त हैं कि दंगा फसाद करते हैं तो भी बंदे मातरम बोलते हैं। हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को तिरंगा झंडा फहराते हैं। उसके बाद शराब पीते हैं और खूब मस्ती करते हैं। फेसबुक और व्हाट्सएप पर तिरंगे के साथ अपनी फोटो शेयर करते हैं। इतने पक्के देशभक्त हैं इंडिया के मैच हारने के बाद पड़ोसी की टीवी भी तोड़ देते हैं। इससे बड़ा देशभक्ति का सुबूत और क्या हो सकता है।

युवाओं का योगदान

वर्ग और उसकी शक्ति–आज का छात्र कल का नागरिक होगा। उसी के सबल कन्धों पर देश के निर्माण और विकास का भार होगा। किसी भी देश के युवक–युवतियाँ उसकी शक्ति का अथाह सागर होते हैं और उनमें उत्साह का अजस्र स्रोत होता है। आवश्यकता इस बात की है कि उनकी शक्ति का उपयोग सृजनात्मक रूप में किया जाए; अन्यथा वह अपनी शक्ति को तोड़–फोड़ और विध्वंसकारी कार्यों में लगा सकते हैं।

प्रतिदिन समाचार–पत्रों में ऐसी घटनाओं के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। आवश्यक और अनावश्यक माँगों को लेकर उनका आक्रोश बढ़ता ही रहता है। यदि छात्रों की इस शक्ति को सृजनात्मक कार्य में लगा दिया जाए तो देश का कायापलट हो सकता है।

युवा चाहे तो देश की तकदीर बदल सकता है। विश्व में सबसे अधिक युवाओं की संख्या भारत में है। युवा वर्ग को भ्रष्टाचार,बेरोजगारी,नशाखोरी, राष्ट्र विरोधी ताकतों व सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई लडऩी होगी। राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका तय होगी तभी देश विकास की और अग्रसर होगा। 

छात्र–

असन्तोष के कारण छात्रों के इस असन्तोष के क्या कारण हैं? वे अपनी शक्ति का दुरुपयोग क्यों और किसके लिए कर रहे हैं ये कुछ विचारणीय प्रश्न हैं। इसका प्रथम कारण है–आधुनिक शिक्षा प्रणाली का दोषयुक्त होना। इस शिक्षा–प्रणाली से विद्यार्थी का बौद्धिक विकास नहीं होता तथा यह विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान नहीं कराती; परिणामतः देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। जब छात्र को यह पता ही है कि अन्तत: उसे बेरोजगार ही भटकना है तो वह अपने अध्ययन के प्रति लापरवाही प्रदर्शित करने लगता है।

विद्यार्थियों पर राजनैतिक दलों के प्रभाव के कारण भी छात्र–असन्तोष पनपता है। कुछ स्वार्थी तथा अवसरवादी राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थों के लिए विद्यार्थियों का प्रयोग करते हैं। आज का विद्यार्थी निरुद्यमी तथा आलसी भी हो गया है। वह परिश्रम से कतराता है और येन–केन–प्रकारेण डिग्री प्राप्त करने को उसने अपना लक्ष्य बना लिया है। इसके अतिरिक्त समाज के प्रत्येक वर्ग में फैला हुआ असन्तोष भी विद्यार्थियों के असन्तोष को उभारने का मुख्य कारण है।

राष्ट्र–निर्माण में छात्रों का योगदान आज का विद्यार्थी कल का नागरिक होगा और पूरे देश का भार उसके कन्धों पर ही होगा। इसलिए आज का विद्यार्थी जितना प्रबुद्ध, कुशल, सक्षम और प्रतिभासम्पन्न होगा; देश का भविष्य भी उतना ही उज्ज्वल होगा। इस दृष्टि से विद्यार्थी के कन्धों पर अनेक दायित्व आ जाते हैं, जिनका निर्वाह करते हुए वह राष्ट्र–निर्माण की दिशा में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकता है।

राष्ट्र–निर्माण में विद्यार्थियों के योगदान की चर्चा इन मुख्य बिन्दुओं के अन्तर्गत की जा सकती है-

(क) अनुसन्धान के क्षेत्र में–आधुनिक युग विज्ञान का युग है। जिस देश का विकास जितनी शीघ्रता से होगा, वह राष्ट्र उतना ही महान् होगा; अत: विद्यार्थियों के लिए यह आवश्यक है कि वे नवीनतम अनुसन्धानों के द्वार खोलें। चिकित्सा के क्षेत्र में अध्ययनरत विद्यार्थी औषध और सर्जरी के क्षेत्र में नवीन अनुसन्धान कर सकते हैं।

वे मानवजीवन को अधिक सुरक्षित और स्वस्थ बनाने का प्रयास कर सकते हैं। इसी प्रकार इंजीनियरिंग में अध्ययनरत विद्यार्थी विविध प्रकार के कल–कारखानों और पुों आदि के विकास की दिशा में भी अपना योगदान दे सकते हैं।

(ख) परिपक्व ज्ञान की प्राप्ति एवं विकासोन्मुख कार्यों में उसका प्रयोग–जीवन के लिए परिपक्व ज्ञान परम आवश्यक है। अधकचरे ज्ञान से गम्भीरता नहीं आ सकती, उससे भटकाव की स्थिति पैदा हो जाती है। इसीलिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी अपने ज्ञान को परिपक्व बनाएँ तथा अपने परिवार के सदस्यों को ज्ञान–सम्पन्न करने, देश की सांस्कृतिक सम्पदा का विकास करने आदि विभिन्न दृष्टियों से अपने इस परिपक्व ज्ञान का सदुपयोग करें।

(ग) स्वयं सचेत रहते हुए सजगता का वातावरण उत्पन्न करना–विद्यार्थी अपने सम–सामयिक परिवेश के प्रति सजग और सचेत रहकर ही राष्ट्र–निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं। विश्व तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। इसलिए अब प्रगति के प्रत्येक क्षेत्र में भारी प्रतिस्पर्धाओं का सामना करना पड़ता है।

इन प्रतिस्पर्धाओं में सम्मिलित होने के लिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी सामाजिक गतिविधियों के प्रति सचेत रहें और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें।

(घ) नैतिकता पर आधारित गुणों का विकास–मनुष्य का विकास स्वस्थ बुद्धि और चिन्तन के द्वारा ही होता है। इन गुणों का विकास उसके नैतिक विकास पर निर्भर है। इसलिए अपने और राष्ट्र–जीवन को समृद्ध बनाने के लिए विद्यार्थियों को अपना नैतिक बल बढ़ाना चाहिए तथा समाज में नैतिक–जीवन के आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए।

(ङ) कर्तव्यों का निर्वाह–आज का विद्यार्थी समाज में रहकर ही अपनी शिक्षा प्राप्त करता है। पहले की तरह वह गुरुकुल में जाकर नहीं रहता। इसलिए उस पर अपने राष्ट्र, परिवार और समाज आदि के अनेक उत्तरदायित्व आ गए हैं। जो विद्यार्थी अपने इन उत्तरदायित्वों अथवा कर्त्तव्यों का निर्वाह करता है, उसे ही हम सच्चा विद्यार्थी कह सकते हैं। इस प्रकार राष्ट्र–निर्माण के लिए विद्यार्थियों में कर्त्तव्य–परायणता की भावना का विकास होना परम आवश्यक है।

(च) अनुशासन की भावना को महत्त्व प्रदान करना–अनुशासन के बिना कोई भी कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न नहीं हो सकता। राष्ट्र–निर्माण का तो मुख्य आधार ही अनुशासन है। इसलिए विद्यार्थियों का दायित्व है कि वे अनुशासन में रहकर देश के विकास का चिन्तन करें।

जिस प्रकार कमजोर नींववाला मकान अधिक दिनों तक स्थायी नहीं रह सकता, उसी प्रकार अनुशासनहीन राष्ट्र अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। विद्यार्थियों को अनुशासित सैनिकों के समान अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, तभी वे राष्ट्र–निर्माण में योग दे सकते हैं।

(छ) समाज–सेवा–हमारा पालन–पोषण, विकास, ज्ञानार्जन आदि समाज में रहकर ही सम्भव होता है; अतः हमारे लिए यह भी आवश्यक है कि हम अपने समाज के उत्थान की दिशा में चिन्तन और मनन करें। विद्यार्थी समाज–सेवा द्वारा अपने देश के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं, वे शिक्षा का प्रचार कर सकते हैं और अशिक्षितों को शिक्षित बना सकते हैं। इसी प्रकार छुआछूत की कुरीति को समाप्त करके भी विद्यार्थी समाज के उस पिछड़े वर्ग को देश की मुख्यधारा से जोड़कर अपने कर्तव्य का पालन करने की प्रेरणा दे सकते हैं।

निष्कर्ष :

युवा बदलते समय के साथ बदलाव ला रहे हैं जो हमारे राष्ट्र को प्रगति की ओर ले जा रहा है। हालांकि, उन्हें अपनी पूरी क्षमता और ऊर्जा देने के लिए प्रेरणा और समर्थन मिलना चाहिए।

विद्याध्ययन से विद्यार्थियों में चिन्तन और मनन की शक्ति का विकास होना स्वाभाविक है, किन्तु कुछ विपरीत परिस्थितियों के फलस्वरूप अनेक छात्र समाज–विरोधी कार्यों में लग जाते हैं। इससे देश और समाज की हानि होती है। भविष्य में देश का उत्तरदायित्व विद्यार्थियों को ही सँभालना है, इसलिए यह आवश्यक है कि वे राष्ट्रहित के विषय में विचार करें और ऐसे कार्य करें, जिनसे हमारा राष्ट्र प्रगति के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ता रहे।

जब विद्यार्थी समाज–

सेवा का लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ेंगे, तभी वे सच्चे राष्ट्र–निर्माता हो सकेंगे। इसलिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थी अपनी शक्ति का सही मूल्यांकन करते हुए उसे सृजनात्मक कार्यों में लगाएँ।

राष्ट्र निर्माण में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। युवाओं के मन में संकल्प होना चाहिए कि अगर हम इस दुनिया में आए है तो कुछ करने के लिए। 


“कुछ काम ऐसे करो की पहचान बन जाए, 

कदम ऐसे रखो की निशान बन जाए 

और ज़िंदगी ऐसी जियों की मिसाल बन जाए।” 


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