शहीद-ए-आजम भगत सिंह
शहीद-ए-आजम भगत सिंह
भगत सिंह
28 सितम्बर 1907 से 23 मार्च 1931 ई०
जन्मस्थल :
गाँव बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में)
मृत्युस्थल:
लाहौर जेल, पंजाब (अब पाकिस्तान में)
आन्दोलन:
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
प्रमुख संगठन:
नौजवान भारत सभा, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन
भगत सिंह का जन्म उस दिन हुआ था, जिस दिन उनके पिता और चाचा को जेल से रिहा किया गया था। उन्हें वर्ष 1906 में लागू किए गए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के कारण गिरफ़्तार किया गया था।
उनका जन्म चक नं 105 जीबी, गांव बंगा, तहसील जारनवाला, ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान में) के लयालपुर जिले में हुआ था। भगत सिंह बचपन के दिनों में
जब वह 12 वर्ष के थे, तब उन्होंने जलियांवाले बाग का दौरा किया। जहां उन्होंने एक बोतल में मिट्टी को समेट लिया, जिसमें बर्बर सामूहिक हत्याकांड में मारे गए लोगों के खून के धब्बे पड़े हुए थे। वह उस बोतल को हमेशा अपने साथ रखते और जहां भी जाते उस बोतल को साथ ले जाते थे। जालियावाला बाग
21 फरवरी 1921 को, उन्होंने ग्रामीणों के साथ गुरुद्वारा ननकाना साहिब में बड़ी संख्या में लोगों की हत्या के खिलाफ विरोध में हिस्सा लिया।
वर्ष 1923 में, अपने कॉलेज के समय वह कई गतिविधियों जैसे कि नाटक और लिखित प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग लेते थे। जिसके चलते उन्होंने एक निबंध प्रतियोगिता भी जीती थी, जिसमें उनका विषय “भारत में स्वतंत्रता संग्राम के कारण पंजाब की समस्याएं” था।
वह किताब पढ़ने के बहुत शौकीन थे, जिसके चलते महज 21 साल की उम्र में उन्होंने पचास से भी अधिक किताबें पढ़ीं। जिनमें राम प्रसाद बिस्मिल और कई रूसी और यूरोपीय लेखकों की पुस्तकें शामिल थीं।
वह महान भारतीय नेता महात्मा गांधी के अनुयायी थे, लेकिन जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को अपनाया, तब भगत सिंह ने अहिंसा के मार्ग का पालन करने से इंकार कर दिया और युवाओं के एक क्रांतिकारी समूह में शामिल होने का फैसला किया।
वर्ष 1926 में, उन्होंने नौजवान भारत सभा की शुरुआत की और स्वतंत्रता के संघर्ष में भाग लेने के लिए युवाओं से अपील की। इसके अतिरिक्त वर्ष 1928 में, उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) का पुनर्गठन किया, जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, भगवती चरण वोहरा, सुखदेव, राजगुरु और शाहिद अशफाकुल्ला खान जैसे नेता शामिल थे। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सद्स्य
मई 1927 में, उन्हें पुलिसकर्मियों द्वारा गिरफ्तार किया गया, क्योंकि वह अक्टूबर 1926 में लाहौर में हुए बम धमाके में संलिप्त थे। जिसके चलते उन्हें ₹60,000 का जुर्माना और पांच हफ्ते की सजा सुनाई गई।
वर्ष 1927 में, जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने उर्दू और पंजाबी समाचार पत्रों के लिए लिखना शुरू किया, जो अमृतसर में प्रकाशित होते थे। वह “कीर्ति किसान पार्टी” के जर्नल के लिए भी लिखते थे, जिसे ‘कीर्ति’ और “वीर अर्जुन अख़बार” के नाम से भी जाना जाता था।
वर्ष 1928 में, वह लाला लाजपत राय की मौत से बहुत प्रभावित हुए और उसी समय भगत सिंह ने पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट की हत्या करके अपना बदला लेने का फैसला किया, जिसने लाला लाजपत राय के विरोध में लाठी चार्ज करने का आदेश दिया था। बाद में, दिल का दौरा पड़ने से राय साहब की मृत्यु हो गई।
भगत सिंह ने पुलिस अधिकारी जेम्स ए स्कॉट की जगह गलती से सहायक पुलिस अधिकारी जॉन पी. सौंडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी, जिन्हे वे लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए मारना चाहते थे। इसके अलावा, चंद्रशेखर आजाद ने इस योजना में भगत सिंह का साथ दिया था। जिसमें उन्होंने पुलिस कांस्टेबल चानन सिंह को गोली मारी थी, जो भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। एक रिपोर्ट के अनुसार, मृत पुलिस अधिकारी के शरीर में आठ गोलियां मिली।
पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद, वह एचएसआरए सदस्य भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गावती देवी की सहायता से लाहौर से भागकर हावड़ा आ गए। दुर्गावती देवी
8 अप्रैल 1929 को, उन्होंने अंग्रेजों के आत्म-सम्मान पर एक और बड़ा हमला करने की योजना बनाई। उन्होंने एचएसआरए के समकालीन सदस्य बटुकेश्वर दत्त के साथ सार्वजनिक गैलरी से असेंबली चैम्बर में दो बम फेंक दिए और वहां से भागने की बजाय वहीं खड़े होकर “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे लगाने लगे। अंत में, उन्होंने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का इश्तिहार
विधानसभा चैंबर में सिंह की गिरफ्तारी के बाद जॉन पी. सौंडर्स (उर्फ लाहौर षड्यंत्र प्रकरण) की हत्या का मामला फिर से संज्ञान में लिया गया। जिसके चलते उन्हें लाहौर की बोरस्टेल जेल भेजा गया। इस मामले की विभिन्न सुनवाईयों के बाद, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को मौत की सजा सुनाई।
वर्ष 1929 में, जेल में रहते हुए, वह अपने साथी कैदी जतिन दास के साथ जेल अधिकारियों के विरोध में भूख हड़ताल पर गए, क्योंकि वहां भारतीय कैदियों के साथ भेदभाव किया जाता था। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कैदियों को खराब भोजन और फटे हुए कपड़े दिए जाते थे।
उनके साथी कैदी जतिन दास, जिन्होंने भूख हड़ताल का समर्थन किया था, उनकी भूख हड़ताल के 64 दिनों के बाद मृत्यु हो गई, जबकि भगत सिंह ने 116 दिनों तक अपनी हड़ताल जारी रखी और अपने पिता के अनुरोध पर अपनी भुख हड़ताल ख़त्म कर दी।
उनके द्वारा रचित डायरी Bhagat Singh’s Jail diary (now converted in a book), Canadian Society & Culture और लेख/दस्तावेजों को संग्रह विभाग द्वारा अभी तक सरंक्षित रखा गया है। भगत सिंह के द्वारा रचित डायरी
लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सज़ा सुनाई गई। भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को शाम सात बजे सुखदेव और राजगुरू के साथ फांसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हंसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। उनका संस्कार गुप्त रूप से गोंडा सिंह वाले गांव में किया गया। जिसके बाद उनकी अस्थियों को सतलुज नदी में विसर्जित किया गया। भगत सिंह मृत्यु प्रमाण पत्र
जेल में अपने आखिरी दिनों के दौरान, वह एक नास्तिक बन गए। एक बार, एक व्यक्ति ने भगवान के साथ अपने मतभेदों के बारे में पूछा; तब उन्होंने जवाब दिया कि “मैं कभी मृत्यु से नहीं डरता हूं इसलिए यही कारण है।” उन्होंने अपनी पुस्तक “Why I am an Atheist An Autobiographical Discourse” में नास्तिक होने के कारण का वर्णन किया है।यह भगतसिंह की पुस्तक है
व्यक्तित्व
जेल के दिनों में उनके लिखे खतों व लेखों से उनके विचारों का अन्दाजा लगता है। उन्होंने भारतीय समाज में लिपि (पंजाबी की गुरुमुखी व शाहमुखी तथा हिन्दी और अरबी एवं उर्दू के सन्दर्भ में विशेष रूप से), जाति और धर्म के कारण आयी दूरियों पर दुःख व्यक्त किया था। उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग पर किसी भारतीय के प्रहार को भी उसी सख्ती से सोचा जितना कि किसी अंग्रेज के द्वारा किये गये अत्याचार को।
भगत सिंह को हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी आती थी जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी। उनका विश्वास था कि उनकी शहादत से भारतीय जनता और उद्विग्न हो जायेगी और ऐसा उनके जिन्दा रहने से शायद ही हो पाये। इसी कारण उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफ़ीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था। पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने अपनी आत्मकथा में जो-जो दिशा-निर्देश दिये थे, भगत सिंह ने उनका अक्षरश: पालन किया[8]। उन्होंने अंग्रेज सरकार को एक पत्र भी लिखा, जिसमें कहा गया था कि उन्हें अंग्रेज़ी सरकार के ख़िलाफ़ भारतीयों के युद्ध का प्रतीक एक युद्धबन्दी समझा जाये तथा फाँसी देने के बजाय गोली से उड़ा दिया जाये।[9] फाँसी के पहले ३ मार्च को अपने भाई कुलतार को भेजे एक पत्र में भगत सिंह ने लिखा था -
उसे यह फ़िक्र है हरदम, नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें, सितम की इंतहा क्या है?
दहर से क्यों खफ़ा रहे, चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही,आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमान हूँ,ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ।
मेरी हवाओं में रहेगी, ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी, रहे, रहे न रहे।
लाजपत राय की मौत का बदला
फरवरी 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग भारत दौरे पर आया। उसके भारत दौरे का मुख्य उद्देश्य था – भारत के लोगों की स्वयत्तता और राजतंत्र में भागेदारी। पर इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था जिसके कारण साइमन कमीशन के विरोध का फैसला किया। लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ नारेबाजी करते समय लाला लाजपत राय पर क्रूरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। भगत सिंह ने लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट, जो उनकी मौत का जिम्मेदार था, को मारने का संकल्प लिया। उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को स्कॉट समझकर मार गिराया। मौत की सजा से बचने के लिए भगत सिंह को लाहौर छोड़ना पड़ा।
केन्द्रीय विधान सभा में बम फेंकने की योजना
ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को अधिकार और आजादी देने और असंतोष के मूल कारण को खोजने के बजाय अधिक दमनकारी नीतियों का प्रयोग किया। ‘डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट’ के द्वारा अंग्रेजी सरकार ने पुलिस को और दमनकारी अधिकार दे दिया। इसके तहत पुलिस संदिग्ध गतिविधियों से सम्बंधित जुलूस को रोक और लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी। केन्द्रीय विधान सभा में लाया गया यह अधिनियम एक मत से हार गया। फिर भी अँगरेज़ सरकार ने इसे ‘जनता के हित’ में कहकर एक अध्यादेश के रूप में पारित किये जाने का फैसला किया।
भगत सिंह यद्यपि रक्तपात के पक्षधर नहीं थे परन्तु वे कार्ल मार्क्स के सिद्धान्तों से पूरी तरह प्रभावित थे। यही नहीं, वे समाजवाद के पक्के पोषक भी थे। इसी कारण से उन्हें पूँजीपतियों की मजदूरों के प्रति शोषण की नीति पसन्द नहीं आती थी। उस समय चूँकि अँग्रेज ही सर्वेसर्वा थे तथा बहुत कम भारतीय उद्योगपति उन्नति कर पाये थे, अतः अँग्रेजों के मजदूरों के प्रति अत्याचार से उनका विरोध स्वाभाविक था। मजदूर विरोधी ऐसी नीतियों को ब्रिटिश संसद में पारित न होने देना उनके दल का निर्णय था। सभी चाहते थे कि अँग्रेजों को पता चलना चाहिये कि हिन्दुस्तानी जाग चुके हैं और उनके हृदय में ऐसी नीतियों के प्रति आक्रोश है। ऐसा करने के लिये ही उन्होंने दिल्ली की केन्द्रीय एसेम्बली में जहाँ अध्यादेश पारित करने के लिए बैठक का आयोजन किया जा रहा था, में बम फेंकने की योजना बनाई।
यह एक सावधानी पूर्वक रची गयी साजिश थी जिसका उद्देश्य किसी को मारना या चोट पहुँचाना नहीं था बल्कि सरकार का ध्यान आकर्षित करना था और उनको यह दिखाना था कि उनके दमन के तरीकों को और अधिक सहन नहीं किया जायेगा।
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ८ अप्रैल १९२९ को केन्द्रीय असेम्बली में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय विधान सभा सत्र के दौरान विधान सभा भवन में बम फेंका। इन दोनों ने एक ऐसे स्थान पर बम फेंका जहाँ कोई मौजूद न था, अन्यथा उसे चोट लग सकती थी। पूरा हाल धुएँ से भर गया। भगत सिंह चाहते तो भाग भी सकते थे पर उन्होंने पहले ही सोच रखा था कि उन्हें दण्ड स्वीकार है चाहें वह फाँसी ही क्यों न हो; अतः उन्होंने भागने से मना कर दिया। उस समय वे दोनों खाकी कमीज़ तथा निकर पहने हुए थे। बम फटने के बाद उन्होंने "इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!" का नारा लगाया और अपने साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिये। इसके कुछ ही देर बाद पुलिस आ गयी और दोनों को ग़िरफ़्तार कर लिया गया।
भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को फ़ाँसी
7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को विशेष न्यायलय द्वारा मौत की सजा सुनाई गयी। भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव और कई अपीलों के बावजूद 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - "ठीक है अब चलो।"
फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे -
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे;मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला।।
इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चन्द्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर उन्होंने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी।
आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता भगत सिंह को आज़ादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिन्दगी देश के लिये समर्पित कर दी।
भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया....
देश की सरकार भगत सिंह को शहीद नहीं मानती है, जबकि आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले भगत सिंह हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं।
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे।
भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला।
इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से,
अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूँ तो इंक़लाब लिखा जाता है
1- “राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आजाद हैं। ” – भगत सिंह Bhagat Singh
2- “प्रेमी, कवि और पागल एक ही चीज़ से बने होते हैं। क्योंकि लोग अक्सर देशप्रेमी को पागल कहते है।” – भगत सिंह Bhagat Singh
3- “जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है, दूसरों के कन्धों पर तो जनाजे उठाये जाते है।” – भगत सिंह Bhagat Singh
4- “वो हर व्यक्ति जो विकास के लिए खड़ा है, उसे हर एक रुढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसके प्रति अविश्वास करना होगा और उसे चुनोती देनी होगी।” – भगत सिंह Bhagat Singh
5- “देशभक्त को अक्सर सभी लोग पागल समझते हैं।” – भगत सिंह Bhagat Singh
6- “इंसानों को तो मारा जा सकता है, पर उनके विचारों को नहीं।” – भगत सिंह Bhagat Singh
7- “मैं एक इंसान हूँ। वो हर बात मुझे प्रभावित करती है जो इंसानियत को प्रभावित करे।” – भगत सिंह Bhagat Singh
8- “निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार यह क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।” – भगत सिंह Bhagat Singh
9- “स्वतंत्रता हर इंसान का कभी न ख़त्म होने वाला जन्म सिद्ध अधिकार है।” – भगत सिंह Bhagat Singh
10- “मुझे कभी भी अपनी रक्षा करने की कोई इच्छा नहीं थी, और कभी भी मैंने इसके बारे में गंभीरता से नहीं सोचा।” – भगत सिंह Bhagat Singh
11- “हमारे देश के सभी राजनैतिक आंदोलनों ने, जो हमारे आधुनिक इतिहास में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उस उपलब्धि की आदर्श में कमी थी जिसका उन्होंने उद्देश्य रखा था। क्रांतिकारी आंदोलन कोई अपवाद नहीं है।” – भगत सिंह Bhagat Singh
12- “क्रांति में अनिवार्य रूप से संघर्ष शामिल नहीं था। यह बम और पिस्तौल का मत नहीं था।” – भगत सिंह Bhagat Singh
13- “यदि बहरों को सुनना है तो आवाज को बहुत जोरदार होना होगा. जब हमने बम गिराया तो हमारा उद्देश्य किसी को हानि पहुंचना नही था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था उन्हें यह आवाज़ सुननी थी कि अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आजाद करना चाहिये।” – भगत सिंह Bhagat Singh
14- “मेरे सीने में जो जख्म है वो जख्म नहीं फूलो के गुच्छे है, हमें तो पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे है।” – भगत सिंह Bhagat Singh
15- “मैं अभी भी किसी भी बचाव की पेशकश के पक्ष में नहीं हूं। यहां तक कि अगर अदालत ने मेरे सह-अभियुक्तों द्वारा बचाव, आदि के बारे में प्रस्तुत की गई याचिका को स्वीकार कर लिया है, तो मैंने अपना बचाव नहीं किया।” – भगत सिंह Bhagat Singh
16- “क्रांति की तलवारें तो सिर्फ विचारों की शान से तेज की जाती हैं।” – भगत सिंह Bhagat Singh
17- “हमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्रांति का मतलब केवल उथल-पुथल या एक प्रकार का संघर्ष नहीं है। क्रांति आवश्यक रूप से मौजूदा मामलों (यानी, शासन) के पूर्ण विनाश के बाद नए और बेहतर रूप से अनुकूलित आधार पर समाज के व्यवस्थित पुनर्निर्माण के कार्यक्रम का अर्थ है।” – भगत सिंह Bhagat Singh
18- “विद्रोह कोई क्रांति नहीं है। यह अंततः उस अंत तक ले जा सकता है।” – भगत सिंह Bhagat Singh
19- “किसी को ‘क्रांति’ शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं की जा सकती , जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं। ” – भगत सिंह Bhagat Singh
20- “बुराई इसलिए नहीं बढ़ रही है कि बुरे लोग बढ़ गए है बल्कि बुराई इसलिए बढ़ रही है क्योंकि बुराई सहन करने वाले लोग बढ़ गये है।” – भगत सिंह Bhagat Singh
21- “मेरा एक ही धर्म है, और वो है देश की सेवा करना।” – भगत सिंह
22-मेरे सीने में जो जख्म है वह सब फूलों के गुच्छे हैं हमें तो पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे हैं
23-जिंदगी अपने दम पर ही जी जाती है औरों के दम पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं
24-बम और पिस्तौल क्रांति नहीं लाते हैं। क्रान्ति की तलवार विचारों के धार बढ़ाने वाले पत्थर पर रगड़ी जाती है।“ ~ भगत सिंह
25-“लिख रह हूँ मैं अंजाम जिसका कल आगाज़ आएगा… मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा।“ ~ भगत सिंह
26-“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा।“ ~ भगत सिंह
27-“सिने पर जो ज़ख्म है, सब फूलों के गुच्छे हैं, हमें पागल ही रहने दो, हम पागल ही अच्छे हैं।“ ~ भगत सिंह
28-दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्ठी से भी खूशबू-ए-वतन आएगी।“ ~ भगत सिंह
29-“इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है।“ ~ भगत सिंह
30-“क्रांतिकारी सोच के दो आवश्यक लक्षण है – बेरहम निंदा तथा स्वतंत्र सोच।“ ~ भगत सिंह“…
31-व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।” ~ भगत सिंह
32-इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है , जैसाकि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे।” ~ भगत सिंह
33-जरूरी नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।“ ~ भगत सिंह
34-किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।”~ भगत सिंह
35-“मेरा धर्म देश की सेवा करना है।”~ भगत सिंह
36-जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।“ ~ भगत सिंह
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English Translation :-
Shaheed-e-Azam Bhagat Singh
Bhagat Singh
28 September 1907 to 23 March 1931 A.D.
Birthplace:
Village Banga, District Lailpur, Punjab (Now in Pakistan)
Deathplace:
Lahore Jail, Punjab (now in Pakistan)
Movement
Indian freedom struggle
Major Organization:
Naujawan Bharat Sabha, Hindustan Socialist Republican Association
Bhagat Singh was born on the day his father and uncle were released from jail. He was arrested for protesting against the Colonization Bill enacted in 1906.
He was born in Chak No 105 GB, Village Banga, Tehsil Jaranwala, Lialpur District of Punjab Province (now in Pakistan), British India. Bhagat Singh in his childhood days
When he was 12, he visited Jallianwala Bagh. Where he assimilated the mud in a bottle, which had blood stains of those killed in the barbaric mass murder. He always kept that bottle with him and took that bottle with him wherever he went. Jallianwala Bagh
On 21 February 1921, he along with the villagers participated in a protest against the killing of a large number of people at the Gurdwara Nankana Sahib.
In the year 1923, during his college, he participated in many activities such as drama and writing competitions. Due to which he also won an essay competition in which his subject was "Problems of Punjab due to freedom struggle in India".
He was very fond of reading books, due to which he read more than fifty books at the age of 21. Including books by Ram Prasad Bismil and several Russian and European authors.
He was a follower of the great Indian leader Mahatma Gandhi, but when Gandhiji adopted the non-cooperation movement, Bhagat Singh refused to follow the path of non-violence and decided to join a revolutionary group of youth.
In the year 1926, he started the Naujawan Bharat Sabha and appealed to the youth to participate in the freedom struggle. Additionally, in the year 1928, he reorganized the Hindustan Socialist Republican Association (HSRA), which included leaders like Ram Prasad Bismil, Chandrashekhar Azad, Bhagwati Charan Vohra, Sukhdev, Rajguru and Shahid Ashfaqulla Khan. Members of Hindustan Socialist Republican Association
In May 1927, he was arrested by policemen, as he was involved in the October 1926 bomb blast in Lahore. As a result, he was fined ₹ 60,000 and sentenced to five weeks.
In 1927, after his release from prison, he started writing for Urdu and Punjabi newspapers, which were published in Amritsar. He also wrote for the journal of "Kirti Kisan Party", also known as 'Kirti' and "Veer Arjun Newspaper".
In the year 1928, he was greatly affected by the death of Lala Lajpat Rai and at the same time Bhagat Singh decided to take his revenge by killing Superintendent of Police James A. Scott, who had ordered the lathi charge to protest against Lala Lajpat Rai. Later, Rai Sahab died of a heart attack.
Bhagat Singh accidentally shot and killed Assistant Police Officer John P. Saunders in place of Police Officer James A. Scott, who he wanted to kill to avenge the death of Lala Lajpat Rai. In addition, Chandrashekhar Azad supported Bhagat Singh in this scheme. In which he shot police constable Chanan Singh, who was trying to capture Bhagat Singh and Chandrashekhar Azad. According to a report, eight bullets were found in the dead police officer's body.
After killing the police officer, he escaped from Lahore to Howrah with the help of Durgavati Devi, wife of HSRA member Bhagwati Charan Vohra. Durgavati Devi
On 8 April 1929, he planned another major attack on the British self-esteem. He, along with HSRA's contemporary member Batukeshwar Dutt, threw two bombs from the public gallery into the assembly chamber and instead of running away, stood there and started chanting "Inquilab Zindabad". In the end, he surrendered to the police. Commercials of Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt
After Singh's arrest in the Assembly Chamber, the murder case of John P. Saunders (aka Lahore Conspiracy Case) was again taken into consideration. Due to which he was sent to Borstal Jail in Lahore. After various hearings in the case, Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev were sentenced to death.
In 1929, while in jail, he along with his fellow prisoner Jatin Das went on hunger strike to protest against the prison authorities, as Indian prisoners were discriminated against there. According to a report, poor food and torn clothes were given to Indian prisoners.
His fellow prisoner Jatin Das, who supported the hunger strike, died after 64 days of hunger strike, while Bhagat Singh continued his strike for 116 days and ended his hunger strike at the request of his father.
The diaries composed by him Bhagat Singh’s Jail diary (now converted in a book), Canadian Society & Culture and articles / documents are still preserved by the collection department. Diary composed by Bhagat Singh
Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru were sentenced to death in the Lahore Conspiracy Case. Bhagat Singh was hanged along with Sukhdev and Rajguru on 23 March 1931 at seven in the evening. The three sacrificed their lives for the laughing country. He was cremated in the village of Gonda Singh in secret. After which his ashes were immersed in the Sutlej River. Bhagat Singh Death Certificate
During his last days in prison, he became an atheist. Once, a person asked about his differences with God; He then replied that "I am never afraid of death, that's why." He has described the reason for being an atheist in his book "Why I am an Atheist an Autobiographical Discourse". This is Bhagat Singh's book
the personality
His thoughts are reflected from his letters and articles written during his prison days. He expressed grief at the distance in Indian society due to script (in terms of Punjabi Gurmukhi and Shahmukhi and Hindi and Arabic and Urdu in particular), caste and religion. He also thought of the attack of an Indian on the weaker section of society in the same manner as the atrocities committed by an Englishman.
Bhagat Singh knew Hindi, Urdu, Punjabi and English as well as Bangla, which he learned from Batukeshwar Dutt. He believed that his martyrdom would cause the Indian public to become more agitated and this could hardly happen with his life. That is why he refused to write an apology even after he sentenced him to death. Pandit Ram Prasad 'Bismil' gave the instructions he gave in his autobiography, Bhagat Singh followed them literally [8]. He also wrote a letter to the British government, stating that he should be seen as a prisoner of war against the British government and instead of being hanged, be shot at. [9] On March 3, his brother was hanged. In a letter sent to Kulatar, Bhagat Singh wrote -
He is always worried about this, what is the new pattern?
Let us see this hobby, what is the condition of sitam?
Why are you angry, why should you burn the wheel,
Sara Jahan Adu is right, let's compete.
I am a guest of some strength, e-Ahle-Mehfil
I am pasture, want to be extinguished.
I will be in the air, the power of thoughts,
This is lush-e-khaq, Fani, stay, stay.
Revenge of Lajpat Rai's death
In February 1928, a commission called Simon Commission from England visited India. The main purpose of his visit to India was - the autonomy of the people of India and participation in the monarchy. But there was no Indian member in this commission, due to which Simon decided to oppose the commission. While shouting slogans against the Simon Commission in Lahore, Lala Lajpat Rai was brutally lathi charged which left him badly injured and later succumbed. Bhagat Singh vows to kill the British officer Scott, who was responsible for his death, to avenge Lajpat Rai's death. He accidentally killed Assistant Superintendent Saunders as Scott. Bhagat Singh had to leave Lahore to escape the death penalty.
Bomb throwing scheme in Central Legislative Assembly
The British government used more repressive policies instead of giving rights and freedom to Indians and finding the root cause of dissatisfaction. Through the Defense of India Act, the British government gave the police more repressive powers. Under this, police could stop the procession related to suspicious activities and arrest people. This act brought in the Central Legislative Assembly was defeated by one vote. Nevertheless, the British government decided to pass it as an ordinance, calling it 'in the public interest'.
Although Bhagat Singh was not in favor of bloodshed, he was completely influenced by Karl Marx's theories. Not only this, he was also a strong feeder of socialism. For this reason, they did not like the policy of the capitalists to exploit the workers. At that time, since the British were the only surveyors and very few Indian industrialists were able to make progress, their opposition to atrocities against the British workers was natural. It was their group's decision not to let the anti-labour policies be passed in the British Parliament. Everybody wanted that the British should know that Hindustani has woken up and there is resentment towards such policies in their heart. To do this, he planned to throw a bomb in the Central Assembly of Delhi where a meeting was being organized to pass the ordinance.
It was a carefully planned conspiracy not to kill or hurt anyone but to attract the attention of the government and show them that their methods of repression would not be tolerated any more.
As per the schedule, Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt threw bombs in the Vidhan Sabha building during the Central Legislative Assembly session on April 4, 1929 in the Central Assembly. Both of them threw bombs at a place where no one was present, otherwise he could get hurt. The entire hall was filled with smoke. Bhagat Singh could have run away if he wanted, but he had already thought that he accepts punishment even if he is hanged; So they refused to run. At that time both of them were wearing khaki shirt and shorts. After the bomb exploded, he said "Inquilab-Zindabad, imperialism-Murdabad!" The slogan was raised and the leaflets brought with him bounced in the air. Shortly thereafter, the police arrived and both were arrested.
Bhagat Singh, Sukh Dev and Raj Guru hanged
On 7 October 1930, Bhagat Singh, Sukh Dev and Raj Guru were sentenced to death by the special court. Despite excessive pressure and numerous appeals by all political leaders of India, Bhagat Singh and his two companions Sukhdev and Rajguru were hanged at around 7.33 pm on 23 March 1931. He was reading a biography of Lenin before going on the gallows, and when asked about his last wish, he said that he was reading Lenin's biography and that he should be given time to do it. It is said that when the jail authorities informed them that the time had come for their execution, they had said - "Stop! First, meet one revolutionary second." Then a minute later the book leapt towards the ceiling and said - "Okay now come on."
While going to the gallows, the three were singing with joy -
Give me the color, Basanti Chola, give me the color; Give me the color, Basanti Chola My color de basanti chola ..
His zeal can be inferred from these zealous lines. At the time of his first meeting with Chandrashekhar Azad, he swore by placing his hand on a burning candle that his life would be sacrificed for the country and he showed his promise.
Even today the people of India and Pakistan see Bhagat Singh as the lover of freedom who dedicated his life including his youth to the country.
A great freedom fighter of India was a revolutionary. Together with Chandrashekhar Azad and other party members, he fought the mighty British government with unprecedented courage for the independence of the country. The murder of Saunders in Lahore and then the bombing of the Central Parliament of Delhi (Central Assembly) gave rise to an open rebellion against the British Empire. They also refused to run away by throwing bombs in the assembly. As a result, he was hanged on 23 March 1931 along with his two other companions, Rajguru and Sukhdev. The whole country remembered his sacrifice very seriously….
The government of the country does not consider Bhagat Singh a martyr, while Bhagat Singh, who sacrificed his life for independence, lives in the heart of every Indian.
Bhagat Singh was born on 27 September 1907 in Banga in Lyalpur district, now in Pakistan. At that time his uncles Ajit Singh and Shwan Singh were supporting the independence of India. Both of them were members of Gadar Pati run by Kartar Singh Sarabha. Both of these had a profound influence on Bhagat Singh. So they started hating the British from childhood.
Bhagat Singh was highly influenced by Kartar Singh Sarabha and Lala Lajpat Rai. The Jallianwala Bagh massacre on 13 April 1919 had a great impact on the child mind of Bhagat Singh.
So familiar is my pen with my emotions,
Even if I want to write Ishqab, it is written Inklab
1- "Every single particle of ash is moving from my heat. I am a lunatic who is free even in jail. ”- Bhagat Singh Bhagat Singh
2- “Lovers, poets and lunatics are made of the same thing. Because people often call patriotism crazy. " - Bhagat Singh Bhagat Singh
3- "Life lives on its own; people are raised on the shoulders of others." - Bhagat Singh Bhagat Singh
4- "Every person who stands for development has to criticize every fundamentalist thing, disbelieve him and give him a choice." - Bhagat Singh Bhagat Singh
5- "Patriot is often considered insane by everyone." - Bhagat Singh Bhagat Singh
6- "Humans can be killed, but not their thoughts." - Bhagat Singh Bhagat Singh
7- “I am a human being. Everything that affects me that affects humanity. " - Bhagat Singh Bhagat Singh
8- "Ruthless criticism and free thought are two important features of revolutionary thinking." - Bhagat Singh Bhagat Singh
9- "Freedom is the proven right of every man to never die." - Bhagat Singh Bhagat Singh
10- "I never had any desire to protect myself, and never thought seriously about it." - Bhagat Singh Bhagat Singh
11- "All the political movements in our country, which have played an important role in our modern history, were lacking in the ideal of achievement which they had intended. The revolutionary movement is no exception. " - Bhagat Singh Bhagat Singh
12- “The revolution did not necessarily involve conflict. It was not the opinion of bombs and pistols. " - Bhagat Singh Bhagat Singh
13- “If the deaf is to be heard then the voice has to be very loud. When we dropped the bomb, our aim was not to harm anyone. We had bombed the British rule, they had to hear the voice that the British should leave India and they should be liberated. " - Bhagat Singh Bhagat Singh
14- "The wound in my chest is not a wound, it is a bunch of flowers, let us be mad, we are crazy good." - Bhagat Singh Bhagat Singh
15- "I am still not in favor of offering any rescue. Even if the court has accepted the plea submitted by my co-accused about defense, etc., I did not defend myself. ” - Bhagat Singh Bhagat Singh
16- "The swords of revolution are only sharpened with the grace of ideas." - Bhagat Singh Bhagat Singh
17- “We should make it clear that revolution does not mean only turmoil or a type of conflict. Revolution necessarily means a program of systematic reconstruction of society on a new and better adapted basis after the complete destruction of existing affairs (ie, governance). " - Bhagat Singh Bhagat Singh
18- “Rebellion is not a revolution. It could eventually lead to that end. " - Bhagat Singh Bhagat Singh
19- "One cannot interpret the word 'revolution' in the literal sense, it is given different meanings and meanings according to the benefit of those who use or misuse the word. ”- Bhagat Singh Bhagat Singh
20- "Evil is not increasing because evil people have increased but evil is increasing because people who tolerate evil have increased." - Bhagat Singh Bhagat Singh
21- "I have only one religion, and that is to serve the country." - Bhagat Singh
22- The wound in my chest is all bunches of flowers, let us remain crazy, we are crazy good
23-Life lives on its own and only people are raised on their own
24-bombs and pistols do not bring revolution. The sword of revolution is rubbed on the stone to increase the edge of thought. "~ Bhagat Singh
25- "I am writing, the outcome of which tomorrow will start… Every strand of my blood will bring revolution" ~ Bhagat Singh
26- "If the deaf is to be heard then the voice has to be very loud." ~ Bhagat Singh
27- "The wound on the cine is all bunches of flowers, let us be mad, we are good mad." ~ Bhagat Singh
28-If you do not come out of your heart, you will be disturbed by the soil, my soil will also come from Khushbu-e-Watan. "~ Bhagat Singh
29- "A human being does something only when he is sure about the appropriateness of his work." ~ Bhagat Singh
30- "There are two essential characteristics of revolutionary thinking - ruthless condemnation and independent thinking." ~ Bhagat Singh "...
31-By crushing individuals, they cannot kill thoughts. " ~ Bhagat Singh
32-Man does something only when he is sure of the justification for his work, as we were about throwing bombs in the Vidhan Sabha. " ~ Bhagat Singh
33- The revolution did not necessarily involve a cursed conflict. It was not a cult of bombs and pistols. "~ Bhagat Singh
34-It is easy to kill any person, but not his thoughts. Great empires crumble, ruin, while their thoughts survive. ”~ Bhagat Singh
35- "My religion is to serve the country." ~ Bhagat Singh
36-Life lives only on your shoulders, only people are raised on the shoulders of others. "~ Bhagat Singh
S.M.Faisal Khan
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